सोमवार, 4 सितंबर 2023

कुएं का रहस्य

दोनों लापता दोस्तों का आज तक पता नहीं चला है। पर लोगों को आज भी उस सड़क पर जाने में डर लगता है। कुछ दुस्साहसियों ने वहां से गुजरने की कोशिश की पर दूर से ही उनको एक बूढ़ा आदमी दिखता है जो उनको बुलाता है और दुस्साहसी .....

बिहार की राजधानी पटना के पास एक उपनगर था। यहीं पर एक एकांत सड़क थी जिस पर से कोई भी रात में नहीं निकलता था। क्योंकि जो कोई वहां से निकला वो वापस लौटकर नहीं आया। आया भी तो कुछ बोल ही नहीं पाया या तो पागल हो गया या फिर मर गया। 


दो युवक इन बातों को नहीं मानते हुए उस सड़क से निकले। इस अफवाह का मजाक उड़ाते हुए वो जा ही रहे थे कि एक बूढ़ा आदमी उनके पास आया।  क्या हुआ दादा-युवकों ने पूछा। बूढ़ा बोला- पास कुएं में मेरा पोता गिर गया है निकाल दो तो मेहरबानी। क्यों नहीं? दोनों ने बूढ़े को आश्वस्त किया। दोनों युवक बूढ़े के साथ कुएं पर पहुंचे।  पेड़ों की छाया में वो एक बेहद मनहूस जगह थी। कुएं में से आवाज आ रही थी-दादा..मुझे बाहर निकालो। युवकों ने कुएं में झांका। अंदर सफेद कपड़ों में एक बच्चे की अस्पष्ट झलक दिखी। एक युवक कुएं में उतर गया और कुछ देर बाद उस बच्चे के साथ बाहर आ गया। 

 


अब युवक ने बूढ़े को डांटा- अरे, तुम लोग इतनी रात में घर के बाहर निकले ही क्यों? बच्चे को कुछ हो जाता तो। वो तो गनीमत है कि हम यहां से जा रहे थे। वरना..। इतना कहकर युवक रुका। युवक की बात सुनकर दादा और पोता जोर-जोर से हंसने लगे। इस बात पर  दोनों युवकों को आश्चर्य हुआ। इसके बाद कुएं में उतरने वाला युवक तुरंत कुछ शंकित होकर बोला- दादा कुआं ज्यादा गहरा नहीं है। इसमें सीढिय़ां भी हैं और तुम चल भी ठीक-ठाक ही रहे हो तो तुमने खुद ही बच्चे को क्यों नहीं निकाल लिया। हमें क्यों बुलाया?

अब दादा और पोता और  जोर से और भयानक ढंग से हंसे। इस बात पर पहले दोस्त ने उनको डांटा- अरे, जब कुएं में उतर  ही नहीं सकते हो तो रात में घर से निकले ही क्यों? मदद के बगैर। अब दादा और पोते ने  जीभ  बाहर निकालकर  बेहद भयानक आवाज निकाली और पहले दोस्त, जो कि उनको डांट रहा था, पर कूदे। वो जिस तरह से कूदे थे  उस तरह से वो इंसान तो नहीं लग रहे थे। यह देखकर दूसरा दोस्त वापस भागा पर वो दिशा भटक गया और जंगल में अंधाधुंध भागने लगा। उसे लगा कि दादा और पोता उसके पीछे हवा में उड़ते हुए आ रहे हैं।  वो भागता गया भागता गया। आखिरकार वो किसी तरह घर वापस पहुंचा।   उसने सारी बात घरवालों को बताई इस बात पर उन लोगों ने तो विश्वास कर लिया पर उसके गायब दोस्त के परिवार वालों ने पुलिस को सूचना दी।


पुलिस मौके पर पहुंची और जांच की। पुलिस ने माना कि दूसरे दोस्त ने पहले वाले को गायब किया है और उसका मानसिक संतुलन बिगड़  गया है। इस बात की बिनाह पर पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया पर उस पर आरोप साबित नहीं हुए और वो तीन महीने बाद घर लौट आया। घर में भी उसने किसी से बात नहीं की। तीन दिन बाद वो बिना कुछ कहे घर से चला गया और फिर कभी घर वापस नहीं आया। लोगों ने उसे आखिरी बार उसी कुएं की ओर जाते हुए देखा था। उसके लापता होने पर घर वालों ने उसे ढूंढा और पुलिस में रिपोर्ट करवाई। पुलिस फिर से कुएं के पास गई जांच की पर कुछ हाथ नहीं लगा और केस बंद हो गया।  

दोनों लापता दोस्तों का आज तक पता नहीं चला है। पर लोगों को आज भी उस सड़क पर जाने में डर लगता है। कुछ दुस्साहसियों ने वहां से गुजरने की कोशिश की पर दूर से ही उनको एक बूढ़ा आदमी दिखता है जो उनको बुलाता है और दुस्साहसी डर के मारे वापस आ जाते हंै।  यह सड़क आज भी वीरान है और लगता है कि वो अब आपको बुला रही है। क्या आप जायेंगे? 


शुक्रवार, 2 जुलाई 2021

प्रायश्चित

छोटे ठाकुर....बकुला ने पीछे से आवाज दी।
एक साधु ठिठककर रुका।
छोटे ठाकुर..बकुला भागकर उनके पास आया।
छोटे ठाकुर..
बकुला...
हां...मालिक
कहां हो आजकल..
छोटे मालिक और कहां होऊंगा..मजदूरी कर रहा हूं..देश आजाद हो गया है..अपनों की गुलामी कर रहा हूं।
साधु हंसा।
हां..हां, हंस लो बाबू..तुम्हारा क्या संन्यासी ठहरे, हम तो जोरू और घरू कोल्हू में पिस रहे हैं बस..
यहां कैसे आये...?
बड़के साले का पिंडदान है बाबू..पर तुम तो तब के गये आज मिले हो..
हां..पर अब न मिलूंगा।
क्यों?
जा रहा हूं बहुत दूर...
बाबू ऐसा न करो..तुम को देखकर चैन आता है बाकी तो..
क्यों क्या हुआ बाकी तो?
बाकी तो अब बाड़ा वीरान है बाबू..
तुम क्या गये..सब..सब लुट गया।
होना ही था एक दिन ऐसा..
पर बाबू तुम गये कहां, ऐसा क्या हुआ? मैं तो गांव गया था लौटा तो कुछ ठीक से पता नहीं चला।
गया..साधु हंसा। गया कहां? अपने पापों की गठरी लिये फिर रहा हूं।
कैसा पाप छोटे बाबू..तुम सा बाड़े कोई न था। तुम देवता थे। देवन थे गांव वालों के, आज भी तुम्हारी बात होती है तो अदब से सिर झुक जाते हैं। छोटी मालकिन आज भी पीहर में तुम्हारी राह तक रही हैं बाबू। उसे तकने दो..उसका कर्ज अगले जन्म पूरा कर दूंगा।
बाबू तुम्हारी आवाज में बहुत दर्द मालूम होता है। आज कह दो, निकाल दो पूरा दर्द।
इससे क्या होगा?
तुम हल्का महसूस करोगे बाबू..
अच्छा.. तो सुनना चाहते हो मेरे पाप की अनसुनी कहानी... तो सुनो।
वो दोनों घाट पर बैठ गये।
बाड़े में वो नाचने वाली आती थी न..
कौन? अमीरन
नहीं..
कौन?
बड़े नसीबों वाली
नसीबन
हां..उसके साथ एक छोटी लड़की को बचपन में देखा था।
कौन? वो बरखा
नहीं..
सुंदरी..
सुंदरी..
हां, तब मैं 12 साल का था, वो थी 10 साल की। उसकी डरी-डरी मृगिनी से आंखें। मैं तो उसे देखता ही रह गया। पूरे बाड़े हाथ पकड़कर उसे मैंने घुमाया..सबकी नजरों से बचाकर। जब ढुंढाई पड़ी तो पकड़ा गया। सब हंसे बोले- ठाकुर का लड़का है बचपन से ही तबीयत रंगीन है। नसीबन ठुमरी गा रही थी। मैं चुपके से सुंदरी को वहां से ले आया था। लड्डू खिलाये और शर्बत भी पिलाया था उसको। बहुत से बेर भी दिये थे। जो पकड़े जाने पर उसके आंचल से गिर गये थे।
बेर खाकर वो बोली थी बेर तो फीका है हमने उसका जूठा छीनकर खाया वो खट्टा था। हम बोले फीका नहीं खट्टा है। इस पर वो तपाक से बोली मीठे तो नहीं है न...। इस पर हम भी बोल पड़े थे- बेर तो मीठे ही थे पर पूरी मिठास तुम्हारे होठों ने चूस ली है। अब वो पलट कर बोली- चखे हो क्या जो ऐसे बोल रहे हो? हम अवाक् रह गये। बाद के दिनों में इस बात को याद कर वो हंस पड़ती थी।
हर साल नसीबन आती। सुंदरी भी आती। 15 साल का होते-होते मैं सुंदरी से कुछ इस तरह मिल गया कि उसे देखे बिना चैन न आता एक बार घोड़ा दौड़ाते मैं उसके कोठे तक पहुंच गया। नसीबन ने मेरी बड़ी खातिरदारी की और जब पता चला कि मैं सुंदरी से मिलने आया हूं तो उससे मिलवाया भी। जब ये बात जाहिर हुई तो बड़ी डांट पड़ी थी मुझे। आज भी याद है बड़े भैया और पिताजी। पूरा बाड़ा सिर पर उठा लिया था दोनों ने। खैर, मैंने भी रास्ता ढूंढ ही निकाला। मैं बाहर के कामों में रुचि दिखाता और मौका पाकर सुंदरी से मिलने पहुंच जाता। सुंदरी के कुछ लोग मुझे आकर खबर दे देते कि कहां मिलना है? पर इश्क-मुश्क झुपाये नहीं छुपते। अब नसीबन का घर आना होता तो भी सुंदरी न आती। कह दिया था उसको। उसके लोग भी अब न आते। एक बार नसीबन को मैंने अकेले में रोक लिया बाड़े में पूछ डाला पूरा हाल। वो बोली- ठाकुर साहब..हम गाते हैं। बांछड़े नहीं हैं हम। हमारी इज्जत है। पतुरिया जान हमारा अपमान न हो। मैंने कह डाला कि सुंदरी से प्रेम है और उसे हम रखेंगे नहीं। उसे ब्याहेंगे।
नसीबन की आंखों के आंसुओं की तो पूछो मत दस बार पूछ डाला। हम दस बार बोले- ब्याहेंगे...ब्याहेंगे...ब्याहेंगे। फिर पूछा- सुंदरी कहां है? वो बोली- गाना सीख रही है। हमने उससे वादा लिया कि वो हमारी अमानत है उसके पास। अब हम सारा हिसाब-किताब देखने लगे तो हिम्मत खुल गई। सीना ठोंकर चले जाते सुंदरी के कोठे पर सब समझते मर्द आदमी है। जाना तो बनता ही है उस पर दौलत अकूत। हम सुंदरी से मिलते वो हमारे लिये सजती-संवरती। उसके सोलह श्रृंगार हम पर यूं बरपते मानों हजारों हथियार एक साथ दागे हों हम पर।
उसकी हर लालसा हमारी ही होती मानों उसका कोई अस्तित्व ही न हो। हर बात उसकी यही होती यह उनको पसंद होगा न। यह उनको पसंद आयेगा न। हमें राधाजी और श्रीकृष्ण की कहानी याद आती। हम भी कृष्ण की तरह यही सोचते- इतना मोह न रख पगली। हम तेरे प्रेम के आगे वामन न हो जायें। कहीं काल ने हमें भी अलग कर डाला तो। उससे कहते तो वो गाती- बांधी जिय की डोर तोसे, जाओ जेहि आंगन, बंधो जेहि ठौर, जा न सकि हो दूर मोसे। हमारा प्रेम हमें उसके समर्पण के आगे लघुकाय लगता इस पर कभी हम उसका माथा चूमते तो कभी पैर। इसमें कहीं भी वासना नहीं थी एक श्रद्धा थी न जाने कैसी?
एक दिन वो बोली- आपके नाम से रख लूं करवाचौथ हमने कहा- रख ले..वो बोली- मांग तो सूनी है..हमने तुरंत भर डाली। अब वो मानों हमारे चरण पडऩे लगी। देह की अगन पर बारिद बन बरसो..सात जन्म हम अबहु न तरसो..तुम ही सिंगार तुम ही नाथ...सत्ते जन्म निभाओ ते साथ।।
उस दिन से वो हमारी पत्नी हो गई। उस हमने जैसे ही उसकी मांग भरी वो आनंदातिरेक से उछलती-कूदती नसीबन के पास पहुंची और ये बात उसे बता दी। वो प्रसन्नता को नेत्रों से छलकाती हमारे पास आई और बोली- छोटे ठाकुर, जन्मोजन्म न मिले ऐसा सम्मान दिया तुमने हमको। हमारे कुनबे में ब्याह तो होता पर ऐसी बड़ी हस्ती न मिलती है। सुंदरी खुद राजपरिवार की वंशज है पर किस्मत का खेल। न राजा का नाम मिला न सम्मान। अब नसीबन ने खुद उसे नववधु की तरह सजाया। मंगलगीत गाया। उस रात हम उसके ही पास रुके।
यहां उसकी जिव्हा मौन हो गई और आंखों में वो दृश्य प्रकट हुआ। चंचल सुंदरी ने सेज पर आते ही मसकदानी (मच्छरदानी) गिरा ली। दूध को स्वयं ही चख लिया।ये उसका शरारती अंदाज़ था और कुछ नहीं। उस रात ऐसी चैन की नींद आई जो अब नसीब नहीं होनी। सुबह जब वो उठा तो देखा। सुंदरी नहाकर कमरे में धूप दे रही थी। वो दीवार पर लगी कान्हा-राधाजी की तस्वीर को धूप देने के लिये कुर्सी पर चढ़ी। उसने देखा कि सुंदरी के पैरों से पानी की एक बूंद बहकर नीचे जा रही थी एक बूंद पायल के घुंघरू पर जमी थी। उसने उठकर हथेली लगाकर बूंद को समेटा और पी गया। वो सकपका गयी- ये क्या करते हो छोटे ठाकुर? हम दब जाये है पाप के बोझ से। इस पर वो बोल पड़ा था- चरणोदक ले रहा हूं प्रेम की देवी का..सात जन्म तर जाइ हैं हम। वो उतर कर बोली- जाओ नहीं बोलते तुम से। वो बोला- नेत्रों से बोल से बोल ही रही हो न...
जाने कैसे ये बात घर पहुंच गई और अब हुआ भाग्य का खेल..हमारी उम्र 20 के करीब थी कि एक दिन अचानक से ब्याह दिये गये हम न मर्जी पूछी न राय मांगी। निर्मला से ब्याह दिया गया हमको। ब्याह के बाद जब हम सुंदरी के पास गये तो वो गंभीर थी आज ही हमने उसे यूं गंभीर देखा। इस पर हमने उसे समझाया कि हम हमेशा उसके ही रहेंगे। जैसे कान्हाजी की परिणीता रुक्मिणी थी पर वो थे तो राधाजी के ही न...बहुत समझाने पर वो अनमने ढंग से मानी और विरहा का गीत सुनाया- धाये..धाये मंदिर, मूरत, नद, नारे..न लौटे सखी न लौटे सखी प्रियवर हमारे। फिरि फिरि जाये केहि भांति कहै जियरा भया अधीर, कान्हा केहि भांति समझिहौं राधा के उर की पीर। बहुत समय में मानी वो हमारी बात।
निर्मला हमारी परिणीता थी पर हम तो सुंदरी के ही हो चुके थे। रोज शाम उसके ही पास जाते। वो हमारे नाम से मांग भरती। हम उसे तोहफा देते कभी पायल तो कभी कंठहार। देर रात लौटते तो निर्मला को देखते..उससे कह भी नहीं पाते कि क्योंकर हमारी राह देखती हो। उसके हम अपराधी हो रहे थे। वहीं सुंदरी का प्रेम हमें डुबाता जा रहा था। बड़के भैया ने एक दिन कुछ लोगों को कोठे पर लट्ठ बजाने भेज दिया। हमको पता चला तो हम वहां जा पहुंचे। हंगामा हुआ..सुंदरी का डरा चेहरा हमें आज भी याद है। हमने चिल्ला-चिल्लाकर कहा- सुंदरी हमारी ब्याहता है। अगर कुछ किया तो कचहरी में मामला पहुंच जायेगा। कोतवाल से कहकर डलवा देंगे कारावास में। शाम को लौटे तो बड़के भैया ने बुलाया। धमकाया हम न माने तो बोले- पतुरिया की जात न जानते हो। हम वहीं चिल्लाये- पतुरिया न कहना मांग भरी है हमने उसकी वो भी निर्मला से पहले। निर्मला ने यह सुना।
हम कमरे में चले गये। दूसरे दिन हम लेखा देख रहे थे कि पता चला। बाग घूमने गई सुंदरी की हत्या कर दी गई है। हम दौड़कर वहां पहुंचे। देखा तो सुंदरी जमीन पर पड़ी थी। बिलकुल शांत। ऐसा लगा कि बुला रही है आइये..स्वामी देखो आज कैसा लेपन किया है हाथों पैरों में तुम्हारी पसंद से सजे हैं हम... कैसा है हमारा मांडना। हमारे कंगन देखो, पैजन की आवाज सुनो। आज कौन सा गीत सुनोगे? उसके हाथों में देखा तो एक अधखुला थैला था जिसमें पके बेर थे। बचपन के प्रेम की निशानी। कच्चे तो वो खुद खा गई थी पके-पके हमारे लिये रख लिये थे। हमारा दिमाग फिर गया।
हम समझ गये किसका काम है। हम घोड़े से बाड़े पहुंचे। वहां अश्वशाला में गये और भीमा, करिया, देशू, नंदू और भाम्भी को संटी से बुरी तरह मारा। वो गिर गये। पर कुछ न बोले। इससे भी मन न भरा तो चाबुक ही चाबुक मारे। इतने में बड़के आ गये। क्यों मारता है इनको?
हमने कह दिया कोतवाली में इनको देंगे कारावास करवायेंगे। बड़के बोले- हमको करवा कारावास। हमने करवाया है ये सब। ये तो निर्दोष है। पतुरिया के चक्कर में बाड़े को लजवाया।
उस दिन हम दहाड़े मार-मार कर रोये। हाय..सुंदरी भी तो निर्दोष थी। हम गये थे उसके पास वो न आयी थी। वो तो समर्पित थी। क्यों मार डाला उसको? हमारा पाप भुगता उसने। हाय हम विधुर हो गये। उस दिन हमने देखा अटारी से निर्मला हमें देख रही थी। सांझ का समय था। हम उस दिन निकले कहकर- पाप हुआ है हमसे..अब न लौटेंगे हम। प्रायश्चित करेंगे जिंदगीभर। बड़के बोले- चला जा..दो दिन बाद वापस आ जायेगा। उस दिन हम निकले तो निकले ही निकले।
हम सीधे कोठे पर पहुंचे। वहां मातम पसरा था। हम वहीं रुके। दूसरे दिन अपने हाथों से उसका दाहकर्म किया। उसे दुल्हन सा सजाया गया था। उसके बाद हम उसकी अस्थियां और राख लेकर उत्तरकर्म करने को निकले पर मन न हुआ और हमनेे अस्थियों का विसर्जन नहीं किया। कोठे से नसीबन ने जो कुछ पैसे दिये थे उससे काशी फिर बनारस पहुंचे। वहीं त्याग दिया संसार को। आलिंगनबद्ध कर लिया संन्यास को। सुंदरी की अस्थियां साथ लेकर तब से ही फिर रहे हैं। मेरी मानों तो छोटे ठाकुर... सुंदरी की अस्थियों का विसर्जन कर दो..उसे मोक्ष दे दो अपने जीवन से अपनी यादों से। उसका अधिकार क्यों छीन रहे हो?
बकुला..यह भी करने की कोशिश की पर ज्यों मटकी छूते हैं त्यों ही उसकी आवाज सुनाई देती है- छोड़ न देहु पिया, बिसार न देहू छोड़ प्रेम की रीत। जग से विलग पर नीकी है हमरे हरदै की प्रीत। सुनि लो हमको मन महि ओठ सिये न सिये। सीने से लगा रखो हमहु, हम जिये न जिये। हमने कह रखा है जब हम मरे तब उसकी अस्थियों में भली तरह से मिलाकर हमारी अस्थियों का विसर्जन कर दिया जाये।
बकुला यह संसार कितना सजीला क्यों न हो पर मन तो कहीं लगता नहीं। सुंदरी का प्रेम था ही ऐसा कि उसका रंग जो चढ़े तो केहि भांति उतरे..उतरे जिन उतरे। हम जब जाते उसका गीत सुनते। हमने कभी उसे छुआ ही नहीं न उसने कभी हम पर हक जताया। स्पर्श का मोहताज नहीं था ये प्रेम। विवाह की रात भी सेज पर एक ओर हम उसे तकते रहे दूसरी ओर वो। जब वो सोगई तो भी रातभर हम उसे तकते रहे फिर न जाने कब आंख लग गई। उसके उस चित्र को मन में रख रखा है आज तक। याद है हमारी आखरी रात जब उससे मिले थे हम। न जाने क्यों उसको ऐसा अहसास था कि दूसरी रात वो हमसे न मिल सकेगी।
उसने पूछा था- ठाकुर..एक बात बताओ।
पूछ..
अगर तुम हमारी आवाज न सुन सकोगे..हमें देख न सकोगे तो क्या करोगे?
हम इतना भर बोले थे कि तुझसे ही यह दुनिया है..प्यारी, तुम नहीं तो जीवन नहीं।
उस रात वो हमारी छाती पर सिर रखकर बहुत चुप्पय रही। बहुत कहने पर वो गायी और सुबक उठी- उड़ी जई है चिडिया..छोड़ के नीड़-निवाड़, तू जगाते रहियो खोल द्वार किवाड़ रे सजनी खोल के द्वार किवाड़। सखी उड़ी जई हैं.. दूसरे दिन वो सैर करने और झूला झूलने को बाग गई। उसकी सखियों ने बताया। हमारे बचपन का किस्सा कहकर उसने पके-पके बेर हमारे लिये चुने। उस दिन वो बोली हम पूरे हो जाये। नदिया सिंधु महि मिल जाये। उर के कुसुम जेहि-तेहि खिलि जाये। उस दिन वो ऐसा झूला झूली कि मानों अब उसे यह नसीब ही न होगा और हुआ भी ऐसा ही। उसका आखरी गीत था- दे सखी झूलो तेज पिय से मिलन रितु आई। कोई न जाना कि ये पिय हम नहीं कान्हाजी होने वाले थे। जब वो लौटी तो टांगे के करीब ही उसको सभी लोग दिख गये पर वो भागी नहीं। बाकी सब भाग निकलीं। वो भागी नहीं। गला दबा दिया उसका। उदर में खंजर भी उतार दिया। उसके अब वो बोल न सका। कुछ देर में चेतना आई।
अच्छा तो अब हम चलें। रेलगाड़ी का बखत हो गया है।
कहां जाओगे छोटे मालिक..
जहां प्रायश्चित ले जाये...
कभी मिलना चाहो तो कहां मिलोगे...
रमता जोगी बहता पानी कहां रुकते हैं पर कभी आओ तो बनारस में बड़े बाबाजी के यहां से जान लोगे कहां हैं हम? वहां होंगे तो मिल लेना।
बाड़े के बारे में नहीं पूछोगे छोटे ठाकुर...
बाड़ा...संन्यासी का बाड़ा तो यह पूरा भूमंडल है..मैं चलता हूं सुंदरी बुला रही है। वो देखो वहां खड़ी है टांगे के पास।
वो दोनों उठकर चलते-चलते बाहर तक आ गये थे। बकुला ने टांगे के पास देखा उसे तो कुछ दिखा नहीं।
जाते-जाते पीछे से पूछा- कोई पूछे तो क्या कहूँ?
कह देना हम ससुराल चले गये हैं।
२८ मई २१

शुक्रवार, 7 मई 2021

The True hidden by Historians: Durgadas and the Doughter of Aurangzeb

Once hindu warriors attacked on Aurangzeb territory under the leadership of Veer Durgadaas to save the life of hindu prisoners. The soldiers of Aurangzeb ran away leaving the daughter of Aurangzeb back. Hindu warriors took the Daughter of Aurangzeb to Veer Durgadaas.
Veer Durgadaas not only made good separate residence for Aurangzeb's daughter to live until she returns back to Aurangzeb but also appointed an Islamic teacher for her to teach her Hadis and Kuran and he himself looked after herself.
After some time she sent back to Aurangzeb.
Looking her Aurangzeb said- What the Kaffir Durgadaas did with you. I think he tried to mislead you from Islam and its teachings at his level best. But I am sure you failed his every attempt.
She replied- Father, I don’t know who is Kaffir but I know only one thing that he is more greater than us.
Aurangzeb got angry- How dare you are speaking this? I will kill you.
It is the difference between You and Durgadaas. Getting me alone Durgadaas could do whatever he want to me. But he paid respect to me and appointed a special Islamic teacher to teach me. While he is a Hindu a Kaffir in your glimpse. And it is a Allah's order to kill them, rape their women (till they become pregnant by a Muslim man in order to purify them) and sale their children.
She spelled out Kalma.
Now think what could be happened to me, if I could be caught by some begot Islamic leader like you. Your coward soldiers ran away leaving me alone. They even didn't think about the daughter of a Islamic leader? they didn't think about the oath of Islam, they spell out to make you happy time to time? Life is more valuable than Islam? Answer less Aurangzeb shouted- Take her away from my eyes.
After this incident he said artificially to his court men (while he was feared of Durgadaas)- I have a great duty to make this earth free from Kaffirs. Soon I will launch a great Campaign against Durgadass.
All court man shouted- Allah ho Akbar!

बुधवार, 30 दिसंबर 2020

हम इंदौर पर कभी हमला नहीं करेंगे! एलियन का कलमछाप द्वारा एक्सक्लूसिव इंटरव्यू

एक कलमछाप देर रात घर लौट रहा था. साइकल पर सवार थका और परेशान....तभी उसने देखा कि एक विचित्र की आकृति सडक़ पर भाग रही है...रात गहरी थी और उसे रामसे बंधुओं की फिल्मों की याद भी थी....कलमछाप ने सोचा कि चलो इसके पीछे चलता हूं...देखें क्या मामला है? हो सकता है कुछ फायदा हो जाए....कलमछाप उसके पीछे हो लिया... और एक जगह उन दोनों का सामना हो गया...कलमछाप ने देखा कि वो आकृति अजीब सी थी बिलकुल एलियन जैसी....वो उसे देखकर डर गई थी...कौन हो? एलियन....हे..एलियन को हिन्दी बोलता सुनकर कलमछाप हैरान हो गया उसे पता था कि एक आरटीआई में किसी ने भारत पर एलियन और पिशाचों के हमले और उनसे निपटने के बारे में जानकारी मांगी थी.. तुम एलियन हो...हां कितनी बार बताऊं हां भई हां...यहां क्या कर रहे हो...मैं यहां खाना खाने आया था सुना है यहां भोजभंडारे होते ही रहते हैं....हां पर अभी सीजन नहीं है सुबह आना श्राद्ध का खाना कहीं न कहीं तो मिल ही जाएगा...वो बात नहीं है..मुझे पौष्टिक खाना चाहिए...वो तो यहां मध्यान्हभोजन में भी नहीं मिलता तुम कहीं और चले जाओ...अच्छा..अब कलमछाप ने सोच अच्छा मौका है इसका एक्सक्लूसिव इंटरव्यू ले लेता हूं हो सकता है कहीं चांस मिल जाए...कलमछाप पेन डायरी निकालने लगा.. ये क्या कर रहे हो? वो घबराया...कुछ नहीं पेन-डायरी निकाल रहा हूं ताकि तुम्हारा इंटरव्यू ले सकूं...अच्छा अच्छा तो ये बात है..पूछो-पूछो शौक से पूछो वैसे भी मेरे ग्रह फाल्तूनोवा में सब मुझे गधा कहते हैं मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि मैं कितना समझदार हूं...
सवाल- क्या आपको मालूम है? एक आरटीआई आपके हमले के बारे में....हां पता चला था पर हमारा ऐसा कोई फ्यूचर प्लान नहीं है...सवाल- आप हमेशा विकसित देश में ही हमला क्यों करते हैं जैसा कि एवेंजर्स में बताया था...अरे यार हमले का कोई फायदा भी तो होना चाहिए भारत में हमला करके हमें क्या मिलेगा हां..वैसे इस फिल्म की पायरेटेड सीडी से फिल्म देखकर हमारे राजा मर गए..उनको डर बैठ गया कि अगर एवेंजर्स ने हमारे ग्रह पर हमला बोल दिया तो..सवाल- अगर आप इंदौर शहर पर हमला कर दें तो? अबे यहां हम हमला क्यों करेंगे? अरे ये स्मार्ट सिटी है..स्मार्ट मेरी नाक का बाल..सडक़ों में गड्ढे, आवारा ढोर, गंदगी, खराब व्यवस्थाएं, अपराधों का हाई ग्राफ...हम पागल हैं जो यहां हमला करेंगे... कलमछाप ने सोचा हम जिन बातों को गलत समझते हैं वास्तव में वो कितनी अच्छी हैं जिनकी वजह से हम एलियनों के हमलों से बचे हुए हैं...क्या सोच रहे हो? अगर हम यहां आते हैं तो हमारी गाडिय़ां गड्ढे में गिर जाएंगी हम जख्मी हो जाएंगे, मर गए तो क्या?...गंदगी से हम बीमार हो जाएंगे शायद मर भी जाएं... आवारा ढोर अगर हम पर हमला कर दें तो हमारा क्या होगा बताओ तो जरा...गाय-ढोर तो ठीक आवारा कुत्ते तो हमारा अगाड़ा पिछाड़ा सब फाड़ देंगे...रैबीज हो गया तो ये बीमारी हमारे ग्रह तक चली गई तो? तुम्हारे शहर में अपराधों का ग्राफ हाई है अगर किसी ने एलियन को चाकू मार दिया तो? यहां दुष्कर्म के मामले बच्चों के साथ तक हो रहे हैं अगर किसी ने हमारी एलियाना को या हमारे बच्चों के साथ...तुम्हारे शहर में नशा होता है-सटï्टा भी होता है हमारे एलियन नशे से बर्बाद हो जाएंगे...सट्टे में हमारे यहां की मुद्रा लगाकर हमारे ग्रह को दीवालिया कर देंगे... अपराधों का प्रभाव तो देखो..यहां पर तो तुम लोगों की रिपोर्ट पुलिस तक नहीं लिखती हम तो फिर परग्रही एलियन हैं यहां के कानून से बाहर...हमारा दिमाग खराब नहीं हो गया है जो इंदौर पर हमला करें.....अगर कभी भविष्य में विज्ञान उन्नत हो गया और इंदौरी तुम्हारे ग्रह पर हमला करने पहुंच गए तो? अरे हां ये तो बहुत खतरे की बात हो जाएगी...मैं जाकर अभी नवनियुक्त एलियन राजा से इस बारे में बात करता हूं. वैसे आपके पास तो अत्याधुनिक हथियारों से भी अत्याधुनिक हथियार होंगे...अरे यार पर वो तुम्हारे इंदौरीयों से ज्यादा नहीं हैं....हें वो कैसे? अरे तुम्हारे यहां तो लोग चम्मच को घिसकर चाकू बना लेते हैं ये टेक्रोलॉजी हमारे पास है ही कहां? और तो और अगर हमारे एलियन बंदूक लेकर आए तो तुम्हारा इंदौरी इन पर गुटका पीक देगा ये भी हमला है वायरसों का हमला...अरे हम तो इसे गंदगी मानते हैं ये तो हथियार निकला..हां तभी हम इंदौरियों से डरते हैं वो कहींसे भी कैसे भी हमला कर सकते हैं...अच्छा अब मैं चलता हूं एक सवाल और...पूछो..कुछ खास चीज जो तुम लेजाना चाहते थे पर ले नहीं जा सके और मौका मिले तो ले जाओगे..राहुल खाट हां...राहुल खाट हमारे ग्रह पर कुछ लोग ये ले गए हैं और आराम से इस पर सो रहे हैं...भाई जाते-जाते एक आखरी सवाल...पूछो पर इसके बाद नहीं...हां..भारत के सुपर हीरो शक्तिमान, क्रिश और फ्लाइंग जट्ट के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है....हाहाहाहा...ये टटपुंजिये अपने देश को नहीं सम्हाल सकते तुम हमारी बात करते हो...देखो शक्तिमान को साधुओं ने पाला था सो वो हिन्दू था एक खास वर्ग के लोगों ने उसका बहिष्कार कर डाला...ये देखकर क्रिश बिना धर्म का हो गया...फ्लाइंग जट्ट सिख है सो फिर खास वर्ग ने उससे दूरी बना डाली..कुछ दिन में दलित कहेंगे ये सुपर हीरो सवर्ण हैं हमें तो दलित सुपरहीरो चाहिए...फिर दबंग सुपरहीरो चाहिए..पाटीदार तो कहीं जाट और कहीं मराठा, हिन्दू-मुसलिम सुपरहीरो...जहां अच्छाई को भी धर्म की नजर से देखा जाता हो वहां का सुपरहीरो इन्हीं बुराइयों में फंसकर दम तोड़ देगा..वो हमारा मुकाबला क्या करेगा? अरे एक बात तो बताते जाओ भारत की कुछ चीज तो तुम्हारे यहां होगी...कुछ खास नहीं पर हमारे राजा रोज रजनी केन (कांट नहीं क्योंकि वो हर चीज कर सकता है) की पूजा करते हैं...अच्छा चलता हूं...पर मुझे और सवाल पूछने हैं...मैं एक-दो दिन बाद फिर आऊंगा तब कर लेना.. यहीं मिलूंगा..मेरा नाम जरूर लगा देना बतोड़ेंबो...तभी कहीं से आवारा कुत्तों ने उस पर हमला कर दिया और वो अंधेरे में गुम हो गया....कलमछाप लौट आया. ये उसी का हिस्सा है आगे के इंटरव्यू के लिए इंतजार करें जैसे कलमछाप को इंतजार है.......

गुरुवार, 24 दिसंबर 2020

राजा-रानी, मंत्री, चोर सिपाही तंत्री

ये कहानी सच है या झूठ इस बात से ज्यादा इस बात को समझना जरूरी है कि ऐसा क्योंकर हुआ।
राजा अपने सिंहासन पर मदिरा के मद में चूर होकर बैठा था तभी मंत्री वहां आया। महाराज......महाराज....। क्या हुआ? क्यों चिल्ला रहा है। राजन हमने अभी एक चोर को पकड़ा है, ये राजमहल से कुछ चोरी करके ले जा रहा था। प्रस्तुत करो....। चोर को लाए। वो डरा नहीं। बोल क्या चुरा रहा था? चोर ने अकड़कर कहा- जरा मंत्री से एकांत में बात करवाइये। राजा बोला- कर ले। मंत्री और चोर एकांत में आए। सुन भई मंत्री...मेरी घुमाफिराकर बात करने की आदत नहीं है। तू महारानी के साथ जो कक्ष में कर रहा था और वो जो चाहकर भी कह रही थीं ना ना रे ना। वो अगर बोल दूं तो। मंत्री चकराया-अरे ये तो बाप निकला। हे क्या सोच रहा है, बचना चाहता है तो अभी कि अभी सवालाख स्वर्ण मुद्राएं दे और राजकीय मुद्रा लगाकर सातकुएं और खेती की जमीन मेरे नाम लिख। मंत्री चालाक था वो बोला- मित्र मैं तो रानी से प्रेम करता हूं। राजा तो कांटा है कांटा ऊपर से कापुरुष भी तू राजा का वधकर दे। मैं तुझे राजा बना देता हूं। रानी को लेकर मैं आधा राज्य ले लूंगा आधा तेरा। चोर सोचने लगा। फिर बोला- रानी से बात करवा वो भी अकेले में तुझ पर यकीन नहीं है।
अब मंत्री सोच में पड़ गया फिर वो उसे लेकर रानी के कक्ष में गया। चोर की पूरी कहानी रानी को सुनाई और कहा कि वो चोर उससे इस बात का प्रमाण चाहता है कि वो भी उसकी प्रेमिका है या नहीं। रानी अकेले मेंं चोर के सामने थी। चोर के आधेनंगे बदन, विशाल भुजाओं और प्रबल पौरुष को देखकर वो मचल उठी। उसने उसे कमनीय अदाएं दिखायी। चोर न पिघला-देखो रानी ये देखकर तो हर कोई रीझ जाएगा मैं जो कहता हूं ध्यान से सुनो। रानी दौड़कर बाहर मंत्री के पास आई। वो मान गया। वो राजा का वध करेगा फिर तुम उसका फिर तुम राजा और मैं रानी। वाह, ये हुई न बात..जानता हूं तुम्हारे वशीकरण से तो साक्षात ब्रम्हदेव भी न बच पाएं। पर एक शर्त है मेरी...। बोलो रानी। मैं उस राजा का वध और इस नीच चोर का वध अपनी आंखों से देखना चाहती हूं। तो चलो जल्दी शुभस्य शीघ्रम्। वो राजा के कक्ष में पहुंचे। राजा कुछ होश में था- आए गए मंत्री...बहुत देर में आए। चोर ने एक चाकू फेंककर राजा को मारा तो वो उसके सीने के आर-पार हो गया। मंत्री ने तुरंत कृपाण से चोर की पीठ पर आघात किया पर वो दर्द से कर्राहकर वहीं गिर गया। राजरानी ने उसकी पीठ में कृपाण उतार दी थी अब चतुर रानी ने कृपाण घायल चोर को फेंककर मार दी। चोर घबरा गया। रानी तुमने तो कुछ और ही कहा था, चोर बोल पड़ा। चोर की आंखों के सामने रानी के कक्ष का दृश्य घूम गया। चोर ने रानी से कहा- मेरी बात ध्यान से सुनों क्यों इस मद्यपायी राजा या पौरुषहीन मंत्री से संबंध रखती हो। तुम मुझे अपने गले में पड़ा नौलखा हार दे दो तो मैं इन दोनों को मारकर तुमको इनके बंधन से मुक्त कर दूंगा। पर यहां तो कुछ और ही हो गया।
अब रानी मुस्कुरायी- क्या तुम पुरुष ही नारी से खेल सकते हो, कभी सीता बनाकर गर्भकाल में वन भेज देते हो तो कभी द्रोपदी के रूप में भरी सभा में उसका शीलहरण होते देखते रहते हो। कभी विधर्मी के रूप में उनको पवित्र करने के उद्देश्य से उनसे दुष्कर्म करते हो कहते हो इनमें आत्मा ही नहीं है और इसे धर्म का अंग बताते हो तो कभी जोधा के रूप में उपहार दे देते हो। चोर और न सह सका और वहीं गिर गया। रानी ने अपने खास सिपाही को बुलाया। जो बाहर ही खड़ा था, उसने चोर और रानी सहित मंत्री और रानी का पूरा वार्तालाप सुना था। जब मंत्री नहीं होता था तो यह सिपाही ही रानी का प्रेमपात्र होता था। चोर मर चुका था और दोनों हत्याएं उसके सिर थीं। अब रानी मुक्त थी। एक दिन बाद रात्रि को रानी शयनकक्ष में थी उसने बाहर से सिपाही को बुलाया वो कक्ष में आ गया। वो कक्ष के कपाट बंद करता उससे पहले रानी की मदपूर्ण आवाज आई- देखना कहीं कोई चोर न हो। सिपाही बोला-राजरानी अबकी मेरी बारी न हो। रानी ने प्याला लेकर अ_हास किया- अभी मुझे तुम्हारी आवश्यकता है। इस सब को जानकर इतिहास तंत्र के तंत्री ने लिखा-
किसी बात का गिला नहीं, शर्म नहीं हया नहीं, किरदार बदले मगर फसाना नया नहीं।
मोहरे अब मात देती हैं खिलाड़ी को, अब खेल भी बाहया नहीं।।

ग्वालिन का परमानंद

किसी गांव में एक ग्वालिन रहती थी। वह रोज एक पुरोहित के घर दूध देने जाया करती थी। पुरोहित का घर नदी के पार था। एक बार बारिश के मौसम में नदी ने रौद्र रूप ले लिया। इस कारण ग्वालिन पुरोहित के घर दूध देने नहीं जा सकी। दूसरे दिन जब ग्वालिन पुरोहित के घर गई तो पुरोहित ने उसे डांटा। इस बात पर ग्वालिन ने उसे बताया कि बारिश के कारण नदी का बहाव बहुत तेज था इसलिये वो नहीं आ पाई।
पुरोहित ने ग्वालिन से कहा कि भगवान श्रीहरि के नाम के सेतु (पुल) से लोग संसार के कष्टों की नदी पार कर जाते हैं तो इस उफनती नदी की क्या बात है? यह बात ग्वालिन के मन पर जम गई। अगले दिन फिर तेज बरसात हुई। नदी ने फिर रौद्र रूप ले लिया। पुरोहित को किसी काम से नदी पार जाना था पर वो उसके चरम बहाव को देखकर वापस लौट आया। कुछ देर बाद ग्वालिन उसके घर दूध देने आई। उसे आया देखकर पुरोहित को आश्चर्य हुआ। उसने उससे पूछा कि नदी का बहाव चरम पर है ऐसे में वो उसे पार कर उसके घर कैसे आई। उसी सेतु से जिसकी बात कल आपने बताई थी, ग्वालिन का सीधा सा उत्तर था। पुरोहित कुछ समझा नहीं इस पर ग्वालिन उसे लेकर नदी के पास पहुंची और श्रीहरि के नाम का जाप कर नदी के वेगवान पानी पर चलने लगी। यह देखकर पुरोहित ने भी ऐसा ही करने की कोशिश की पर वो असफल हो गया।
भगवान श्रीहरि विष्णु भावों के आग्रही हैं वह हृदय की पवित्रता और समर्पण देखते हैं स्तर नहीं इसलिये अपढ़ ग्वालिन भगवान की कृपा को प्राप्त कर गई वहीं ज्ञानी पुरोहित असफल हो गया।

बुधवार, 23 दिसंबर 2020

कहानी महादैत्य मिनाटोर की

(ये कहानी ग्रीक की लोक कथाओं पर आधारित है।)
ये कहानी शुरू होती है शक्तिशाली सम्राट एस्थेरियस या कहें एस्टेरिअन की मौत पर, एस्थेरियस जिसकी अपनी कोई संतान नहीं थी। उसके अनाथ राज्य को साथ मिला उसके सौतेले बेटे और उसकी बेइंतहा खूबसूरत पत्नी यूरोपा और देवताओं के राजा जूस की संतान मिनस का। मिनस ने एस्टेरियस के राज्य पर अपना दावा पेश किया पर उसके सामने मुसीबतें कम नहीं थी इसलिये उसने 12 ओलंपियंस में से पांचवे ओलंपियन समुद्रों और तूफानों के देवता पोसेइडन से प्रार्थना की कि वो उसे अपना प्रतीक एक सांड दें जिससे कि वो अपने दुश्मनों पर यह जाहिर कर सके कि उसका राज्याभिषेक होना देवताओं की भी इच्छा है। उसने वादा किया कि वो राज्य मिलने के बाद उस सांड को पोसेइडन को बलि चढ़ा देगा।
पोसेइडन ने उसकी प्रार्थना स्वीकार करते हुए उसे एक सांड दिया। पोसेइडन ने अपना काम किया और मिनस को राज्य मिल गया।
अब मिनस की बारी थी अपना वादा निभानेे की पर मिनस ने जैसे ही उस सांड को देखा उसका मन बदल गया। सांड श्वेत रंग का और बेहद हृष्ट-पुष्ट था। उसकी सुंदरता और शक्ति को देखते हुए मिनस ने निर्णय लिया कि वो उस सांड की जगह किसी और सांड को बलि चढ़ायेगा और इस सांड को सुरक्षित रखेगा।
शीघ्र ही क्रोधित होने की प्रकृति वाले पोसेइडन इस बात पर नाराज हो गये और मिनस की पत्नी पेसिफे के मन में उस सांड के लिये अनुराग पैदा कर दिया।
मन में इस सांड से संसर्ग की इच्छा से तड़पती पेसिफे ने देवताओं के शिल्पी डिडेलस पर अपनी मंशा जाहिर की। डिडेलस ने उसके लिये एक लकड़ी की गाय बनाई।
पेसिफे ने इस काष्ठ की गाय में बैठकर इस सांड से संसर्ग किया। इस मिलन से पेसिफे गर्भवति हुई और उसने एक विचित्र बच्चे को जन्म दिया। इस बच्चे का सिर एक सांड का और धड़ एक मानव का था।
इस विचित्र बच्चे को इसके दादा एस्टेरिअन ने नाम दिया मिनाटोर जिसे मिनाटोरस के नाम से भी जाना गया।
इस बच्चे ने तेजी से विकसित होना शुरू कर दिया। जैसे-जैसे वो बढ़ता गया उसकी भूख भी बढ़ती गई। दूसरी ओर बदनामी के डर से पेसिफे ने डिडेलस को एक ऐसी भूलभुलैया का निर्माण करने का आदेश दिया जिसमें से न तो मिनाटोर बाहर आ सके और न ही उसमें जाने वाला बाहर आने का रास्ता कभी खोज ही पाये। ताकि उसकी बदनामी सामने न आ पाये और यदि कोई इस बारे में जानने की कोशिश करे तो वो ही खत्म हो जाये।
बहुत जल्द ये अंधेरी भूलभुलैया महान दैत्य मिनाटोर की आश्रय स्थली बन गई। यहां मिनाटोर को मानव मांस दिया जाता था यहां खासकर उसे एथेंस के चौदह महान ज्ञानवान लोगों को भोज्य के तौर पर प्रस्तुत कर दिया गया जिनको एथेंस शहर से कुर्बानी के लिये हर नौ साल के अनुबंध पर मिनोस के आदेश पर लाया गया था। इसके पीछे मिनोस का बदला भी था जो वो एथेंसवासियों से लेना चाहता था। उसका पुत्र एंड्रोगिनस एथेंसवासियों की जलन का शिकार हो गया था जो उसके द्वारा उनको (एथेंसवासियों) पेनेथेनिक क्रीड़ाओं में हराये जाने से उपजी थी।
मिनाटोर की भूख बढ़ती गई और लोगों की कुर्बानी होती रही। पर जैसे हर रात की सुबह होती है वैसे ही हर पाप का अंत होता है और मिनाटोर का भी अंत था। एथेंस के दुर्भाग्य को बदलने के लिये भी एक योद्धा का आगमन हुआ। शैतान कितना भी ताकतवर क्यों न हो ईश्वर से उसकी ताकत हमेशा ही कम होती है क्योंकि उसको भी ईश्वर ने ही जन्म दिया था। तीसरी बार जब एथेंसवासियों को कुर्बानी के लिये ले जाया जा रहा था तब इनके बीच थीसियस नामक योद्धा क्रीट की यात्रा करने के लिये इनके साथ चला गया या कि उसे भी मिनाटोर के भोजन के लिये ले जाया गया।
क्रीट में मिनोस की बेटी एरिडन थीसियस को दिल दे बैठी। उसने निश्चय किया कि वो थीसियस की मदद करेगी। उसने देवताओं के शिल्पी और भूलभुलैया के निर्माता डिडेलस से प्रार्थना की कि वो उसे भूलभुलैया का रहस्य बताये। डिडेलस का यह निश्चय कि वो भूलभुलैया के बारे में किसी को नहीं बतायेगा प्रेम की शक्ति के आगे नत हो गया और उसने उस भूलभुलैया को खोल दिया। इस घुप्प अंधकार में मिनोटोर कहां होगा इसका किसी को भी पता नहीं था। अपनी मौत से मुकाबला करने जा रहे थीसियस को एरिडेन ने धागों की गेंद दी जिससे कि वो मार्ग में भटके नहीं। एरिडेन ने अमत्र्य देवताओं से प्रार्थना की कि वो थीसियस की रक्षा करें। एरिडन ने थीसियस को यह भी बताया कि मिनाटोर को उसी के अस्त्र-शस्त्र से मारा जा सकता है। थीसियस ने एरिडन से वादा किया वो जिंदा लौटने की कोशिश करेगा और ये जानकारी मददगार थी। अगर किस्मत में हुआ तो उनका मिलन होगा।
थीसियस भूलभुलैया के अंधकार में गुम हो गया। समझदार थीसियस ने धागों की सहायता से मार्ग को चिन्हित किया ताकि वो वहां भटके नहीं। अंधकार में वो शवों की दुर्गंध से परेशान हुआ, अधखाये शवों से टकराया, नरकंकालों में उलझा और अंत में वो भूलभुलैया के केंद्र में जा पहुंचा। यहां उसका मुकाबला हुआ महान योद्धा मिनाटोर से। थीसियस ने उसे जितना शक्तिशाली समझा था वो उतना शक्तिशाली नहीं था...वो उससे भी अधिक अतुलनीय रूप से शक्तिशाली था। उन दोनों में घमासान युद्ध हुआ जिसमें मिनाटोर का सींग टूट गया थीसियस ने उसी सींग से मिनाटोर की छाती भेद दी और इस प्रकार महान मिनाटोर का अंत हुआ और क्रीट और एथेंस को इस महान राक्षस से मुक्ति मिली।

कुएं का रहस्य

दोनों लापता दोस्तों का आज तक पता नहीं चला है। पर लोगों को आज भी उस सड़क पर जाने में डर लगता है। कुछ दुस्साहसियों ने वहां से गुजरने की कोशिश ...